दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र में राजनाथ सिंह, यहीं हुआ था ऑपरेशन मेघदूत; क्यों इसे याद कर पाक के दिल में आज भी होता है दर्द

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह आज सियाचिन दौरे पर है। ये इसलिए भी खास माना जा रहा है क्योंकि वे दुनिया की सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित वार जोन में तैनात सैनिकों से मिलेंगे। सियाचिन का नाम आते ही ऑपरेशन मेघदूत की याद आ जाती है। ये वही ऑपरेशन है जिससे भारतीय सेना ने सफलता का स्वर्णिम अध्याय लिखा था।

क्या था ‘ऑपरेशन मेघदूत’

  • ‘ऑपरेशन मेघदूत’ भारतीय सेना के शौर्य बल की गाथा है। 13 अप्रैल 1984, ये वही दिन है जब इस ऑपरेशन को अंजाम दिया गया था।
  • हालांकि, ऑपरेशन 1984 में शुरू हुआ था, लेकिन भारतीय वायु सेना के हेलीकॉप्टर 1978 से ही सियाचिन ग्लेशियर में काम कर रहे थे। वायु सेना का चेतक हेलीकॉप्टर सियाचिन में अक्टूबर 1978 में ग्लेशियर में उतरने वाला पहला IAF हेलीकॉप्टर बना था।
  • दरअसल, भारत और पाकिस्तान में बंटवारे के दौरान जो समझौता हुआ था, उसमें युद्धविराम रेखा सियाचिन ग्लेशियर के लिए अस्थाई थी। किसी ने ये नहीं सोचा था कि इतनी ऊंचाई पर भी सैन्य अभियान हो सकता है।
  • इसके बाद 1982 में ही पाकिस्तान ने अपनी औकात दिखानी शुरू कर दी। पाक की ओर से तत्कालीन उत्तरी सेना कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल चिब्बर को पत्र आने लगे, जिसमें भारत को सियाचिन ग्लेशियर से दूर रहने को कहा। इससे भारतीय सेना सतर्क हो गई और उसने 1983 की गर्मियों के दौरान भी ग्लेशियर पर गश्त जारी रखी।
  • खुफिया रिपोर्ट के जरिए भारतीय सेना समझ गई थी कि पाक की नीयत खराब हो रही है। खुफिया इनपुट में बताया गया था कि पाक सियाचिन पर कब्जे की फिराक में है।
  • खुफिया एजेंसी रॉ से मिली इस जानकारी के बाद भारत ने ‘ऑपरेशन मेघदूत’ शुरू किया। इसे तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने इजाजत दी थी।

कैसे चला ‘ऑपरेशन मेघदूत’?

इसके बाद भारतीय सेना और भारतीय वायु सेना (आईएएफ) उत्तरी लद्दाख क्षेत्र की ऊंचाइयों को सुरक्षित करने के लिए सियाचिन ग्लेशियर की ओर बढ़ी। इस ऑपरेशन में भारतीय वायुसेना द्वारा भारतीय सेना के जवानों को एयरलिफ्ट करना और उन्हें हिमनद चोटियों पर छोड़ना शामिल था।

ऑपरेशन मेघदूत में एक IAF के रणनीतिक एयरलिफ्टर्स ने खाद्य पदार्थ और सैनिकों को पहुंचाया और ऊंचाई वाले हवाई क्षेत्रों में कई चीजों की आपूर्ति की। जल्द ही, लगभग 300 सैनिक ग्लेशियर की महत्वपूर्ण चोटियों पर तैनात हो गए। जब तक पाकिस्तानी सेना कोई हमला बोलती, तब तक भारतीय सेना रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण पर्वत चोटियों पर कब्जा कर चुकी थी, जिससे उसे बड़ा लाभ मिला।

-40 डिग्री तापमान में रहे सैनिक

13 अप्रैल को बैसाखी के दिन पाकिस्तानी सेना को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए ऑपरेश शुरू हुआ। इस ऑपरेशन की सबसे बड़ी चुनौती पाक सेना नहीं, बल्कि वहां का माइनस 40 डिग्री तापमान था। यहां ऑक्सीजन की कमी और बर्फीली हवाएं जान लेने पर उतारू थीं, लेकिन सेना के जवानों की हिम्मत के आगे वो भी नहीं टिक सकीं।

ऐसे सियाचिन को किया गया सुरक्षित

इसके बाद भारतीय वायुसेना के हंटर विमान ने लेह के ऊंचाई वाले हवाई क्षेत्र से लड़ाकू अभियान शुरू किया। लेह से जैसे-जैसे ग्लेशियर के ऊपर बड़ी संख्या में हमले किए जाने लगे, इसने ग्लेशियर पर तैनात भारतीय सैनिकों का मनोबल बढ़ाने का काम किया। इसके बाद चीता और एमआई 8 हेलीकॉप्टर्स ने उड़ान भरी और बिलाफोंड ला और सिया ला चोटियों को सुरक्षित कर लिया। बाद में पूरे ग्लेशियर को ही सुरक्षित कर लिया गया।