MCD वार्ड परिसिमन मामले पर दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सराकर से मांगा जवाब

दिल्ली उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी में हाल में नगर निगम के वार्ड के परिसीमन के खिलाफ दायर एक याचिका पर शुक्रवार को केंद्र और दिल्ली सरकार का जवाब मांगा। मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के 250 वार्ड के लिए 17 अक्टूबर को केंद्र की जारी अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका पर दोनों सरकारों के साथ-साथ परिसीमन समिति को नोटिस जारी किया।

दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अनिल कुमार की याचिका में वार्ड के नए परिसीमन के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। याचिका में दावा किया गया है कि परिसीमन के लिए अधिकारियों द्वारा अपनाया गया फॉर्मूला ‘‘पूरी तरह से मनमाना, तर्कहीन, अस्पष्ट, भ्रमित करने वाला और विभिन्न कानूनी खामियों का शिकार था।’’ याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद ने शुक्रवार को कहा कि उनकी याचिका एमसीडी चुनाव कराने के खिलाफ नहीं है, बल्कि इसलिए है कि चुनाव तर्कसंगत तरीके से होना चाहिए।

वरिष्ठ वकील ने दलील दी कि अधिसूचित परिसीमन समान और आनुपातिक प्रतिनिधित्व को नहीं दर्शाता है क्योंकि वार्ड की जनसंख्या के मामले में असमानता है। उन्होंने अदालत को अवगत कराया कि याचिकाकर्ता ने परिसीमन कवायद के संबंध में आपत्तियां उठाने के लिए संबंधित अधिकारियों को आवेदन दिया था, लेकिन उस पर कार्रवाई नहीं की गई। वकील गौरव दुआ, विकास यादव और साजिद चौधरी द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि परिसीमन करने का उद्देश्य विभिन्न वार्ड में समान संख्या में मतदाताओं की मौजूदगी का पता लगाना और यह हाल की जनगणना से प्राप्त जनसंख्या के आंकड़ों पर आधारित है।

हालांकि, संबंधित आदेश से परिसीमन के पीछे का यह उद्देश्य निरर्थक हो गया, क्योंकि अंतिम मसौदा आदेश में अधिसूचित 250 वार्ड में समान संख्या में निर्वाचक मंडल नहीं हैं। याचिका में कहा गया, ‘‘2011 की जनगणना के अनुसार दिल्ली की कुल जनसंख्या 1,67,87,941 है और यदि इसे 250 वार्ड की कुल संख्या से विभाजित किया जाए, तो प्रत्येक वार्ड की औसत जनसंख्या 65,000 प्लस/माइनस दस प्रतिशत होनी चाहिए।’’ याचिका में कहा गया कि प्रत्येक वार्ड की जनसंख्या ऊपरी सीमा के अनुसार 71,500 और न्यूनतम सीमा के अनुसार 58,500 होनी चाहिए। लेकिन, आश्चर्यजनक रूप से प्रतिवादी संख्या दो ने उपरोक्त फॉर्मूला का पालन नहीं किया है और वार्ड का अपनी मर्जी और पसंद के अनुसार असमान तरीके से परिसीमन किया गया है।

याचिका में कहा गया है कि इसलिए 17 अक्टूबर की अधिसूचना असंवैधानिक थी और याचिकाकर्ता सहित नागरिकों द्वारा बताई गई सभी विसंगतियों की जांच के लिए वार्ड के उचित सर्वेक्षण या निरीक्षण किए बिना प्रकाशित की गई थी। याचिका में यह भी कहा गया है कि समुदाय और धर्म के आधार पर वार्ड का विभाजन संविधान के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन है और ‘‘कई इलाकों को अलग-थलग टापू में बदल दिया गया है क्योंकि वे भौतिक रूप से किसी वार्ड के भीतर हैं लेकिन परिसीमन में उन्हें अन्य वार्ड के अंदर दिखाया गया है जो कई किलोमीटर दूर है।’’ याचिका में दलील दी गई है कि परिसीमन कवायद ‘‘दिमाग लगाए बिना सबसे बेतरतीब तरीके से’’ की गई और प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में वार्ड की संख्या तय करने के फार्मूले का कई विधानसभा क्षेत्रों में घोर उल्लंघन किया गया। मामले में अगली सुनवाई 14 दिसंबर को होगी।