रामचरितमानस के बहाने जातिगत जनगणना की तैयारी

लोकसभा चुनावों में अभी एक साल का वक्त है, लेकिन सियासत की पिच उत्तर प्रदेश में मजबूती से तैयार होने लगी है। पिच की मजबूती के लिए रामचरितमानस के बहाने जातिगत जनगणना की गोलबंदी शुरू हो गई है। बिहार में तो जातिगत जनगणना के आंकड़े भी कुछ दिनों में आने वाले हैं। जबकि उत्तर प्रदेश में इसी आधार पर सियासत का पारा जबरदस्त तरीके से गर्म हो रहा है। सियासी जानकार भी मानते हैं कि पिछड़ों की राजनीति करने और खेल बिगाड़ने का मौका विपक्ष को न मिले, इसीलिए उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी सियासी दांव चलते हुए जातिगत जनगणना का समर्थन कर दिया।

उत्तर प्रदेश में रामचरितमानस की चौपाई पर समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के विवादित बयान के साथ पवित्र ग्रंथ को फाड़ने की घटना से सियासत उफान पर है। उत्तर प्रदेश की सियासत को करीब से समझने वाले वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दरअसल उत्तर प्रदेश ने पिछड़ों की राजनीति का कितना महत्व है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हर राजनीतिक दल बगैर पिछड़ों की बात किए हुए उत्तर प्रदेश में सियासी कदम नहीं बढ़ा सकता। उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषण राजकुमार सिंह कहते हैं कि जब स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरितमानस की चौपाई पर विवादित बयान दिया, तो समाजवादी पार्टी की सियासत के नजरिए से यह बयान बहुत उर्वरा लगा। वह कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में जिस तरीके से रामचरितमानस की चौपाई से शुरू हुई सियासत जातिगत जनगणना पर पहुंच गई वह भी सियासत के लिहाज से बहुत उपजाऊ मानी जा रही है।