महिलाओं से जुड़ा वो क्या है समझौता ,जिसने तुर्की के राष्ट्रपति को घेर लिया

तुर्की (Rashtrapratham): तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैय्यप एर्गोआन ने हाल में अपने देश को महिला सुरक्षा से जुड़े एक इंटरनेशनल समझौते से बाहर कर लिया. इसपर तुर्की की सड़कों पर आम महिलाओं से लेकर मानवाधिकार संगठन तक उतर आए हैं. इधर तुर्की के राष्ट्रपति की पुरानी दलील है कि ऐसा समझौता घर तोड़ने और तलाक के मामले बढ़ाने वाला है. जानिए, क्या है वो समझौता, जिसे एर्दोआन तलाक बढ़ाने वाला मान रहे हैं।
मई 2011 में तुर्की समेत 47 देशों ने एक समझौते पर दस्तखत किए, जो महिला सुरक्षा से जुड़ा हुआ था. तुर्की की राजधानी इंस्ताबुल में होने के कारण इसे इस्तांबुल सम्मेलन कहा गया. ये समझौता साल 2014 में लागू हुआ था. इसके तहत महिला अधिकारों और सुरक्षा को लेकर सख्त नियम बनाए गए. साथ ही सदस्य देशों को ये सुनिश्चित करना था कि महिलाएं उनके देश में दूसरे दर्जे की नागरिक बनकर न रह जाएं।
महिला अधिकारों पर बात करने वाले इस समझौते में यूरोपीय और अरब के देशों को ही जोड़ा जा रहा था. हालांकि बहुतेरे देशों ने इसका हिस्सा बनने से इनकार कर दिया. आर्मेनिया, बुल्गारिया, चेक गणराज्य, हंगरी, लातविया, लिकटेंस्टीन, लिथुआनिया, मोल्दोवा गणराज्य, यूक्रेन और यूके, रूस और अजरबैजान ने ऐसे किसी भी समझौते से जुड़ने से साफ मना कर दिया।
इस बीच 34 देशों ने इसमें बनाए गए नियमों को अपने यहां पूरी तरह से लागू कर दिया, वहीं बाकी देश औपचारिकता ही पालते रहे. तुर्की, जहां ये सम्मेलन हुआ था, वो खुद ऐसे ही देशों में शामिल था. बता दें कि तुर्की में महिलाओं के अधिकार लगभग नहीं के बराबर हैं. हालांकि इस्तांबुल काफी आधुनिक जगह है लेकिन इसके अलावा देश के बाकी हिस्सों में महिलाओं के लिए आजादी नहीं।
खुद एर्दोआन भी महिलाओं के ढंका हुआ रहने की बात करते हैं. बता दें कि पहले मुस्लिम-बहुल इस देश में हिजाब प्रतिबंधित रहा. अगर कोई युवती हिजाब में है, तो उसे यूनिवर्सिटी जाने की इजाजत नहीं होती थी. लेकिन एर्दोआन के आने के बाद से हिजाब का चलन एकदम से बढ़ा. इसकी एक वजह ये है कि खुद एर्दोआन की पत्नी यानी देश की प्रथम महिला एमीन एर्दोआन हिजाब पहनती हैं।

क्या है वैक्सीन का बूस्टर शॉट और क्यों जरूरी है?

साल की शुरुआत में तुर्की में हॉरर किलिंग का एक मामला काफी उछला था, जिसमें युवती को उसके परिवार ने इसलिए मार दिया क्योंकि उसने अपने चचेरे भाई से शादी करने से इनकार कर दिया था और उसकी बजाए अपनी पसंद के बारे में बताया था. वहीं पिछले साल एक युवती के अलग होने पर नाराज प्रेमी ने उसे मार दिया था और जलाकर उसे डस्टबिन में फेंक दिया था. इस मामले के बाद तुर्की की महिलाओं के हालात इंटरनेशनल मीडिया में खुलकर सामने आए थे।
ब्रिटिश अखबार द गार्जियन की एक रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 42% तुर्की महिलाएं 15 से 60 साल की उम्र के दौरान बहुतों बार अपने पति या साथी की मारपीट और यौन हिंसा का शिकार होती हैं. साल 2019 में 474 महिलाओं की उनके ही पति या प्रेमियों ने हत्या कर दी. माना जा रहा है कि साल 2020 में कोरोना के दौरान ये आंकड़ा और बढ़ा ही होगा. जैसे We Will Stop Femicide Platform का मानना है कि घरेलू वजहों से पिछले साल लगभग 300 महिलाओं की हत्या कर दी गई।

क्यों अमेरिका और रूस के बीच तनाव दोबारा गहरा रहा है?

तुर्की में महिलाओं की खराब हालत के बाद भी राष्ट्रपति ने उनकी सुरक्षा के समझौते से किनारा कर लिया. इस बात पर तुर्की महिलाएं खौल रही हैं. विपक्ष की नेता गोकी गोकिन ने एर्दोआन के इस कदम को महिलाओं को दूसरे दर्जे का नागरिक मानने और उन्हें मरने देने का फैसला बताया. कहा तो ये भी जा रहा है कि राष्ट्रपति और उनके सहयोगी तुर्की को कट्टर मुस्लिम देश बनाने में लगे हुए हैं और इस वजह से वे ऐसे सारे नियमों से अलग हो रहे हैं जो बराबरी की बात करे. जैसे हागिया सोफिया म्यूजियम को साल 2020 में मस्जिद में बदल दिया गया।