जब भगवान श्रीराम ने पीड़ा से मुक्ति दिलाई

सुग्रीव निश्चित ही भयक्रांत स्थिति में था। होता भी क्यों नहीं? यह तो शुक्र है कि टांगें परीक्षा में खरी उतरीं। ऐसा भागा कि बालि भी देखता ही रह गया होगा। लेकिन भगवान न करें, अगर मैं भागने में असफल हो गया होता तो? हो जाती न आज ही शमशान की यात्रा। और प्रभु ने भी अच्छी लीला कर दी। कह रहे थे कि तुम आगे बढ़ो। सुग्रीव हम तुम्हारे पीछे हैं। भई पीछे हैं तो ठीक है लेकिन आगे भी तो आना चाहिए था।

लात−घूंसे खाने के लिए मुझे सामने कर दिया और स्वयं है कि पेड़ की आड़ ही नहीं छोड़ रहे थे। और भला यह क्या तर्क हुआ कि हम दोनों भाइयों का रूप एक-सा था। माना कि प्रथम दृष्टि में मैंने नहीं पहचाना था। लेकिन न पहचानने की व्याधि आपको भी है। यह तो हमें पता ही नहीं था। जब हमने आपको नहीं पहचाना था तो तब किसी की हानि तो नहीं हुई थी। लेकिन आपने हमें पहचानने में भूल क्या की, कि हमारे तो प्राणों पर ही बन आई। यह तो भला हो कि हम भाग लिए। नहीं तो भविष्य में आपकी किसी भी लीला में भाग लेने का अवसर ही छिन गया होता।

आप तो कल्पना भी नहीं कर सकते कि बालि का घूंसा कितना पीड़ादायक है। विश्वास कीजिए बस जिंदा भर हूँ, वरना मुझमें और मुर्दे में कोई ज्यादा अंतर नहीं है। कम्बख्त के मन में मेरे प्रति रत्ती भर भी दया या स्नेह नहीं है। पापी मुझ पर ऐसे झपटा जैसे सिंह किसी निरीह हिरण पर झपटता है। कुछ भी हो प्रभु आपने पहले बता दिया होता कि आपकी दृष्टि ज़रा कमजोर है तो मैं ऐसा दिल दहलाने वाला कृत्य कभी करता ही ना।