मन के भीतर यात्रा करने से होंगे प्रभु के दर्शन

धर्म/अध्यात्म (Rashtra Pratham): हम भूल गए हैं कि यह माया की दुनिया है। हम भूल गए हैं कि असलियत बाहर की दुनिया में नहीं, अंदर की दुनिया में है। हम भूल गए हैं कि जिस ध्येय से हम यहां आए थे, वह क्या है? बहुत से लोग यही सोचते हैं कि इस धरती पर आने का मकसद सिर्फ  भौतिक वस्तुओं को पाना है। हम भूल जाते हैं कि यहां आने का सही मकसद इस दुनिया को पाना नहीं, बल्कि  रूहानी दुनिया को पाना है, ताकि हम मंजिल तक पहुंच सकें और चौरासी लाख योनियों से छुटकारा पा सकें।हम रोजाना कर्म करते हैं- एक कर्म, दूसरा कर्म, तीसरा कर्म, चौथा कर्म।

अध्यात्म के लिहाज से, चाहे कर्म अच्छा हो या बुरा हो, सभी बंधन का कारण हैं। हम यहां पर जैसे भी कर्म करें, चाहे वे बुरे हों, चाहे अच्छे हों, उनका फल हमें क्या मिलता है? हमें वापिस इस दुनिया में आना पड़ता है। पर इनसान यह बात समझ नहीं पाता, क्योंकि वह सोचता है कि मुझे यह जिंदगी मिल गई है, अब मैं इसमें कुछ करके दिखाऊं। दिखाना किसको है? अगर कुछ करना है, तो ऐसा करें, जो प्रभु को दिखा सकें।

भजन-अभ्यास, प्रभु के नाम का जाप। हम एक अच्छी जिंदगी जिएं, ताकि हमारे कदम तेजी से अपनी मंजिल की ओर उठने लगें। पर हम लोग क्या करते हैं? हम सोचते हैं, अपने भाई-बहनों को दिखाना है, अपने दोस्तों को दिखाना है, तो चलो! एक नई कार खरीद लें, मकान भी थोड़ा बड़ा सा ले लें, ताकि उनको लगे, हमारा काम बहुत अच्छा है। और इनसान ऐसी जिंदगी जीना शुरू कर देता है, जिसमें वह असलियत को जाने बगैर बाहर की दुनिया, जो फरेब की दुनिया है, के रंग में रंग जाता है। अगर हम ऐसा करेंगे, तो हम कैदी के कैदी रह जाएंगे। अगर इस कैद से निकलना है, तो फिर ‘शब्द’ के साथ जुड़ना होगा, अंदर से जागृत होना होगा।

हमारे अंदर भरपूर रूहानी खजाने हैं। अगर हम अंदर की दुनिया में जाएंगे, तो उन खजानों को पाएंगे। जो कस्तूरी मृग होता है, वह कस्तूरी की खुशबू को सूंघता-सूंघता, कभी वहां भागता है, कभी यहां भागता है और भागते-भागते ही मर जाता है। उसे कभी यह अनुभव नहीं होता कि कस्तूरी की खुशबू उसके अंदर से ही आ रही है। अगर भीतर की ओर झांकेगा, तो उस खुशबू को पा सकेगा।