रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग

धर्म/अध्यात्म (Rashtra Pratham): हमारे यहां पुराणों में कहा गया है कि सावन के महीने में एक भी ज्योतिर्लिंग के दर्शन अगर आप ने कर लिया तो आपके भाग्य खुल जाएंगे। आपको सभी दुष्कर्मों से मुक्ति मिलेगी और आप सत्कर्म के भागी बनेंगे। इसी कड़ी में हम आपको 11वें ज्योतिर्लिंग रामेश्वरमके बारे में बताएंगे। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि इस ज्योतिर्लिंग में राम का नाम जुड़ा है और इसकी स्थापना भगवान राम के हाथों की गई थी।इस ज्योतिर्लिंग को लेकर दो तरह की कथाएं प्रचलित हैं।

पहली कथा के अनुसार भगवान राम जब माता सीता को छुड़ाने के लिए लंका पर चढ़ाई करने जा रहे थे, तब उन्होंने बालू से शिवलिंग की स्थापना की और विजय की कामना के लिए भगवान शिव की आराधना की। तब भगवान शिव प्रकट हुए थे और श्री राम को विजयी होने का आशीर्वाद दिया। भगवान राम ने तब भगवान शिव से प्रार्थना की थी कि वे वहीं स्थापित हो जाएं और अपने भक्तों को अपना दर्शन देते रहें। भगवान शंकर, श्रीराम जी की बात को टाल ना सके और रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग में हमेशा के लिए स्थापित हो गए।

वहीं दूसरी कथा के अनुसार कहा जाता है कि जब भगवान राम लंका विजय कर वापस लौट रहे थे, तब उन्होंने गंधमादन पर्वत पर विश्राम करने का विचार किया। प्रभु राम के गंधमादन पर्वत पर होने की खबर पाकर ही तमाम साधु-संत उनसे मिलने आए और उनके दर्शन की प्रार्थना करने लगे। जब भगवान राम ने उन संतों को बताया कि ब्राम्हण पुलस्त्य के वंशज रावण का वध करने के बाद ‘ब्रह्म हत्या’ का मैं भागी हो गया हूं और आप आप लोग मुझे इस पाप से मुक्त होने का कोई उपाय बताएं।

वहां उपस्थित सभी ऋषि-मुनियों ने प्रभु श्रीराम को सलाह दी कि वे शिवलिंग की स्थापना करें और उनसे प्रार्थना करें कि वह आपको इस ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति दिलाएं।

तब श्रीराम, रामेश्वरम द्वीप पर ब्राह्मण हत्या से मुक्ति के लिए शिवलिंग स्थापना की शुरुआत की और उन्होंने हनुमान जी को शिवलिंग ले आने के लिए कैलाश पर्वत भेजा।

कहते हैं कि हनुमान जी कैलाश पर्वत पर बहुत देर तक भगवान शिव के दर्शन नहीं कर पाए और वहीं बैठ कर प्रतीक्षा करने लगे। इधर शुभ मुहूर्त के निकल जाने के भय से माता सीता ने बालू से ही शिवलिंग का निर्माण किया और शुभ मुहूर्त में पूजा अर्चना कर शिवलिंग की स्थापना कर ली।

उधर भगवान शिव के लौटते ही हनुमान कैलाश पर्वत से पत्थर का शिवलिंग को लेकर लौट आए लेकिन तब तक वहां बालू के शिवलिंग की स्थापना हो चुकी थी। हनुमान जी ने प्रभु से प्रार्थना की बड़ी मेहनत से यह पत्थर का शिवलिंग लाया हूं, आप इसे स्थापित करें। तब श्र राम जी ने कहा कि आप खुद ही बालू के शिवलिंग को हटा दीजिए, तब आपके द्वारा लाए हुए पत्थर के शिवलिंग की पूजा करेंगे।

कहा जाता है कि हनुमान जी अपने समस्त बल से बालू से निर्मित शिवलिंग को तोड़ने और हटाने का प्रयत्न करने लगे, लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ। शिवलिंग हटाने के इस प्रयास में हनुमान जी को काफी चोटें भी आईं और उनके शरीर से रक्त भी बहने लगा। तब श्री राम ने हनुमान जी को समझाया कि वह उनके द्वारा लाए हुए शिवलिंग की भी स्थापना कर देंगे। और इस प्रकार हनुमान जी के द्वारा लाए हुए शिवलिंग की स्थापना कर उसे ‘विश्व लिंग’ या ‘हनुमान लिंग’ का नाम दिया गया।