भगवान चित्रगुप्त जयंती

धर्म/अध्यात्म (Rashtra Pratham): परमपिता ब्रह्मा जी के अंश से उत्पन्न हुए भगवान चित्रगुप्त यमराज के सहयोगी हैं। इस बार इनकी जयंती 30 अप्रैल को मनाई जाएगी। यम द्वितीया के दिन मनाया जाने वाला यह पर्व कायस्थ वर्ग में अधिक प्रचलित है। उनके ईष्ट देवता भी चित्रगुप्त जी हैं।

सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से जब भगवान विष्णु ने अपनी योग माया से सृष्टि की कल्पना की तो उनकी नाभि से एक कमल निकला जिस पर एक पुरुष आसीन था चूंकि इनकी उत्पत्ति ब्रह्मांड की रचना और सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से हुई थी अत: ये ब्रह्मा कहलाये। इन्होंने सृष्टि की रचना के क्रम में देव-असुर, गंधर्व, अप्सरा, स्त्री-पुरुष पशु-पक्षी को जन्म दिया। इसी क्रम में यमराज का भी जन्म हुआ जिन्हें धर्मराज की संज्ञा प्राप्त हुई क्योंकि धर्मानुसार उन्हें जीवों को सजा देने का कार्य प्राप्त हुआ था।

धर्मराज ने जब एक योग्य सहयोगी की मांग ब्रह्मा जी से की तो ब्रह्मा जी ध्यानलीन हो गये और एक हजार वर्ष की तपस्या के बाद एक पुरुष उत्पन्न हुआ। इस पुरुष का जन्म ब्रह्मा जी की काया से हुआ था अत: ये कायस्थ कहलाये और इनका नाम चित्रगुप्त पड़ा।जोभी प्राणी धरती पर जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है क्योंकि यही विधि का विधान है। विधि के इस विधान से स्वयं भगवान भी नहीं बच पाये और मृत्यु की गोद में उन्हें भी सोना पड़ा।

चाहे भगवान राम हों, कृष्ण हों सभी को निश्चित समय पर पृथ्वी लोक त्याग करना पड़ता है। मृत्युपरान्त क्या होता है और जीवन से पहले क्या है यह एक ऐसा रहस्य है जिसे कोई नहीं सुलझा पाया लेकिन जैसा कि हमारे वेदों एवं पुराणों में लिखा और ऋषि मुनियों ने कहा है उसके अनुसार इस मृत्युलोक के ऊपर एक दिव्य लोक है जहां न जीवन का हर्ष है और न मृत्यु का शोक। वह लोक जीवन मृत्यु से परे है।