धर्म/अध्यात्म (Rashtra Pratham): प्रभु ऐसा प्रेम नहीं चाहते, जो क्षणभंगुर हो। वे एक सरसरी नजर या अल्पकालीन मिलन नहीं चाहते। वे एक शाश्वत दृष्टि, एक शाश्वत मिलन चाहते हैं। अपने प्रियतम के साथ एकमेक होने की शाश्वत अवस्था में रहना चाहते हैं। इस भौतिक संसार के सबसे उत्तम व करीबी रिश्ते भी अंतत: खत्म हो जाते हैं, क्योंकि इस संसार का नियम ही ऐसा है। हमारे भौतिक स्वरूप का अंत होना सुनिश्चित है। जब हम जीवन की अनिश्चितता के बारे में जानते हैं, तो हम एक ऐसा प्रेम चाहते हैं, जो अनश्वर हो। उसे हम प्रभु रूपी शाश्वत प्रेम के महासागर में तैर कर पा सकते हैं। प्रभु का प्रेम नश्वर नहीं होता। जब हम प्रभु से प्रेम करने लगते हैं, तो हम एक ऐसे प्रियतम से प्रेम करने लगते हैं, जो मृत्यु के द्वार के परे भी हमारे साथ रहता है।
जब हम प्रभु के निर्मल, पवित्र महासागर में तैरते हैं, तो हम अपने सच्चे स्वरूप का, अपनी आत्मा का प्रतिबिंब देख पाते हैं। यहां हमारी शांति को भंग करने वाला कोई भौतिक आकर्षण नहीं होता। क्षणिक सांसारिक सुखों की बजाय हम प्रभु के शाश्वत प्रेम का अनुभव करने लगते हैं। जब हम प्रभु के महासागर में तैरते हैं, तो हम दिव्य आह्लाद का अनुभव करते हैं।
हम किसी भी समय इसमें डुबकी लगा सकते हैं। जब हम इस सरोवर में जाते हैं तो समस्त चिंताओं से मुक्त हो जाते हैं। हम पूर्णतया तनावरहित हो जाते हैं। हमारे मन व आत्मा में परमानंद समा जाता है। जब हमारी आत्मा इसमें स्नान करती है, तो वह शांति से भरपूर हो जाती है। जब हमारी आत्मा शांत होती है, तो हमारा मन और शरीर भी स्वाभाविक रूप से शांत हो जाता है। जब हम प्रभु के साथ तैरते हैं, तो जो आह्लाद हमारी आत्मा में रम जाता है, वह किसी भी दुनियावी संतुष्टि से हजारों गुना अधिक होता है। हम पूरी तरह से प्रभु-प्रियतम के ध्यान में ही मग्न रहते हैं।
हमारी आत्मा के अंतरतम से लेकर हमारा संपूर्ण अस्तित्व प्रभु के दिव्य प्रेम से आनंदविभोर हो जाता है। हमें ज्ञात हो जाता है कि इस दुनिया की हर चीज और जीव अस्थायी है। हम जान जाते हैं कि एक दिन हम यहां से चल बसेंगे या जिनसे हम प्रेम करते हैं, वो चल बसेंगे। सिर्फ आत्मा और परमात्मा शाश्वत है। जब हम नश्वर दुनिया के लिए अपना मोह त्याग देंगे और प्रभु के साथ जुड़ जाएंगे, हम सदा-सदा के सुख को पा लेंगे।
हम जब चाहें प्रभु के साथ तैर सकते हैं। हम ऐसा ध्यान के अभ्यास के द्वारा कर सकते हैं। जब हम ध्यान-अभ्यास नहीं भी कर रहे होते हैं, तब भी हम उस परमानंद में डूबे रहते हैं। हम प्रेम से भरपूर हो जाते हैं। अहिंसा, सच्चाई, पवित्रता, नम्रता और निष्काम सेवा से भरपूर हो जाते हैं। प्रभु के सरोवर में गोता लगाकर हम अनंत काल तक परमानंद में तैर सकते हैं। जब हम प्रभु के निर्मल, पवित्र महासागर में तैरते हैं, तो अपने सच्चे स्वरूप का, अपनी आत्मा का प्रतिबिंब देख पाते हैं। हम दिव्य आह्लाद का अनुभव करते हैं।