धन-दौलत से नहीं समर्पण से प्रसन्न होते हैं ईश्वर

धर्म/अध्यात्म (Rashtra Pratham): एक बड़े ऋषि से उनके शिष्य ने पूछा कि भगवान किस प्रकार प्रसन्न होते कि वह भक्त की सभी समस्याएं दूर कर दें। ऋषि ने शिष्य को एक कहानी संस्मरण सुनाते हुए बताया कि एक बार किसी देश का राजा अपनी प्रजा का हाल-चाल पूछने के लिए गांवों में घूम रहा था। घूमते-घूमते राजा के कपड़ों का बटन टूट गया, उसके सेवक तत्काल ही गांव के दर्जी को लेकर पहुंचे। दर्जी ने बहुत सुंदर तरीके राजा का बटन सिल दिया।

बटन लगाने के बाद दर्जी जाने लगा, तभी राजा ने पूछा कि बटन लगाने का क्या इनाम दिया जाए। अब दर्जी सोचने लगा कि क्या मांगा जाए, क्योंकि बटन तो राजा का था, उसने तो सिर्फ अपना धागा प्रयोग किया था, इतने से काम का क्या इनाम मांगा जाए।

दर्जी बोला, महाराज बहुत छोटा सा काम था, ये तो मेरा सौभाग्य है कि मुझे आपकी सेवा का मौका मिला। राजा देखना चाहता था कि दर्जी उससे क्या मांगता है, क्योंकि वह इलाके का एकमात्र दर्जी है तो उसका व्यवहार आम लोगों से कैसा है। इस पर राजा ने जोर देकर पूछा कि क्या दिया जाए तो दर्जी सोच में पड़ गया।

दर्जी क्योंकि लालची नहीं था, इसलिए उसने राजा से कहा, महाराज जो आपकी इच्छा हो आप दे दीजिए। राजा को यह बात बहुत अच्छी लगी कि दर्जी ने जरा सा भी लालच नहीं किया, नहीं तो वह अपनी मांग बता सकता था। दर्जी के धैर्य को देखते हुए राजा ने उसे अच्छा इनाम देने के लिए कहा। राजा ने अपने मंत्री से कहा कि दर्जी को इनाम में दो गांव दे दो। अब दर्जी सोचने लगा कि कहां तो वह दस रुपये मांग रहा था, कहां उसे राजा ने दो गांवों का मालिक बना दिया।