धर्म/अध्यात्म (Rashtra Pratham): अपनी असफलता पर परेशान होकर एक युवक कुछ विचार कर रहा था। इसी बीच वहां से गुजर रहे एक महात्मा ने उस युवक को देखा तो उससे उसकी शानी पूछ बैठे। युवक ने बुझे मन से कार्य में असफल रहने की व्यथा महात्मा को बताई। महात्मा ने पूछा कि यह सब तो ठीक है, लेकिन अब उदास होने से क्या होगा, उठो और आगे बढ़ो लेकिन युवक हिम्मत हार चुका था। यह देख महात्मा ने युवक शानी पूछ बैठे। युवक ने बुझे मन से कार्य में असफल रहने की व्यथा महात्मा को बताई। महात्मा ने पूछा कि यह सब तो को एक छोटी सी कहानी सुनाई।
महात्मा बोले, एक घर में पांच दीये जल रहे थे। उनमें से एक दीये ने परेशानी होते हुए कहा कि इतना जलकर भी मेरी रोशनी की लोगों को कोई कदर नहीं! तो बेहतर यही होगा कि मैं बुझ जाऊं। वह दिया खुद को व्यर्थ समझ कर बुझ गया। महात्मा ने युवक से पूछा जानते हो, वह दिया कौन था? वह दिया था उत्साह का प्रतीक।यह देख दूसरा दिया, जो शांति का प्रतीक था, कहने लगा- निरंतर शांति की रोशनी देने के बावजूद लोग हिंसा नहीं छोड़ रहे, इसलिए मुझे भी बुझ जाना चाहिए और शांति का दिया बुझ गया।
उत्साह और शांति के दीये के बुझने के बाद, जो तीसरा दिया हिम्मत का था, वह भी अपनी हिम्मत खो बैठा और बुझ गया। महात्मा ने बताया कि उत्साह, शांति और अब हिम्मत के न रहने पर चौथे दिए ने भी बुझना उचित समझा। यह चौथा दिया समृद्धि का प्रतीक था।
बारी-बारी सभी दीये बुझने के बाद केवल पांचवां दिया जो अकेला ही जल रहा था, लगातार जलता रहा। हालांकि पांचवां दिया सबसे छोटा था, फिर भी वह निरंतर जल रहा था। इसी बीच घर में मालिक ने प्रवेश किया। उसने देखा कि उस घर में सिर्फ एक ही दीया जल रहा है। वह खुशी से झूम उठा।
खास बात यह थी कि घर का मालिक चार दीये बुझने की वजह से दुखी नहीं हुआ बल्कि एक दिया जो जल रहा था उसे देखकर प्रसन्न हुआ। घर के मालिक ने तुरंत पांचवां दिया उठाया और बाकी के चार दीये फिर से जला दिए।
प्रसंग सुना रहे महात्मा ने परेशान युवक से फिर एक प्रश्न किया और पूछा कि जानते हो वह पांचवां अनोखा दीया कौन सा था ? वह था उम्मीद का दिया… महात्मा ने युवक को सीख देते हुए कहा कि इसलिए अपने मन में सदैव उम्मीद का दीया जलाए रखें। चाहे सब दिए बुझ जाएं लेकिन उम्मीद का दीया नहीं बुझना चाहिए । ये एक ही दीया काफी है बाकी सब दियों को जलाने के लिए ….