मिटने-बनने की पराकाष्ठा है हस्तिनापुर। जब-जब विध्वंस हुआ, सृजन की दृढ़ शक्ति बढ़ती गई। इस प्रक्रिया में बहुत कुछ मटियामेट हो गया। कुछ आज भी अवनि के गर्भ में है। यह जयंती माता का आशीष ही है कि वह आज भी हस्तिनापुर में विराजमान हैं। हस्तिनापुर आएं तो पांडवों की कुलदेवी के दर्शन भी करें… श्रीकृष्ण के कहने पर पांडवों ने जयंती माता की आराधना की। पांडवों की भक्ति से प्रसन्न होकर जयंती माता ने उन्हें अस्त्र-शस्त्र व महाभारत युद्ध में विजयी होने का आशीर्वाद दिया था। पांडव टीले पर जयंती माता शक्ति पीठ मंदिर है। गर्भगृह में जयंती माता की मूरत विराजी है। उसके आगे माता की प्राचीन पिंडी है। जयंती माता का स्वरूप महाकाली का है। बाहर कुमुदेश्वर भैरव हैं।मंदिर के पुजारी शंकर लाल शुक्ला ने बताया कि कुछ साल पहले तक माता की पिंडी खुले में विराजमान थी। 2005 में मंदिर का निर्माण कराया। महाभारत युद्ध में विजय के लिए जयंती माता ने पांडवों को अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए थे। यह मंदिर हस्तिनापुर की आस्था का प्रमुख केंद्र है। चैत्र नवरात्र, सात फेरी मेला, गुरु पूर्णिमा, शारदीय नवरात्र आदि उत्सवों पर मेला लगता है। मां भगवती सती माता के शरीर के अंग, आभूषण, धारण किए हुए वस्त्र जहां-जहां गिरे, वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए। हस्तिनापुर में मां सती का विग्रह जो दक्षिण गुल्फ है, दाहिनी जंघा का पिंडली वाला भाग का एक अंग गिरा था। वही जयंती माता के नाम से विख्यात हुआ। मां भगवती का वह स्वरूप क्रोधपूर्ण होने के कारण महाकाली के रूप में यहां परिणित हो गया। मां सती यहां पिंडी स्वरूप में विराजमान है।