धर्म/अध्यात्म (Rashtra Pratham) अच्छे विचार ही मनुष्य की सबसे बड़ी पूंजी है, क्योंकि धन और बल किसी को भी गलत राह पर ले जा सकता है किन्तु अच्छे विचार सदैव ही अच्छे काम के लिए प्रेरित करते हैं। आइए ! गीता प्रसंग में चलें- पिछले अंक में भगवान श्री कृष्ण ने अपने परम मित्र अर्जुन को संसार के शोक सागर से उबारने के लिए इंद्रियों को वश में करते हुए बुद्धिमानी पूर्वक निष्काम कर्म करने का उपदेश दिया था।भगवान की बात सुनकर अर्जुन दुविधा में पड़ गए। अपनी दुविधा दूर करने के लिए उन्होंने भगवान से यह प्रश्न पूछा-
ज्यायसी चेत्कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन।
तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव॥
अर्जुन ने कहा– सभी जन की याचना पूरी करने वाले हे जनार्दन! यदि आप निष्काम-कर्म की अपेक्षा ज्ञान को श्रेष्ठ मानते हैं तो फिर मुझे इस भयंकर कर्म (युद्ध) में क्यों लगाना चाहते हैं?
व्यामिश्रेणेव वाक्येन बुद्धिं मोहयसीव मे।
तदेकं वद निश्चित्य येन श्रेयोऽहमाप्नुयाम् ॥
आपके अनेक अर्थ वाले शब्दों से मैं दुविधा में पड़ गया हूँ। मेरी बुद्धि काम नहीं कर पा रही है, अत: इनमें से मेरे लिये जो एकमात्र कल्याणप्रद हो उसे कृपा करके निश्चय-पूर्वक मुझे बतायें, जिससे मैं उस श्रेय को प्राप्त कर सकूँ।