बरसाना, नंदगांव, मथुरा एवं गोकुल की होली के बाद दाऊजी में हुरंगा हुआ। नंगे बदन पर कोड़ों की मार देखने के लिए यहां हजारों देशी-विदेशी श्रद्धालु उमड़े। हुरंगा के नायक शेषावतार दाऊजी महाराज हैं। दाऊजी के हुरंगा की अनूठी परंपरा है। कहावत है कि ‘देखि-देखि या ब्रज की होरी, ब्रह्मा मन ललचाबै।’ ब्रज की होली भगवान श्रीकृष्ण पर केंद्रित है, वहीं, दाऊजी का हुरंगा उनके बड़े भाई बलदेव जी पर केंद्रित है। हुरंगा में पुरुष गोप समूह को महिलाएं गोपिका स्वरूप द्वारा प्रेम से भीगे पोतने की मार नंगे बदन पर खाते हैं।दाऊजी का हुरंगा ब्रज की होली मुकुटमणि है। हुरंगा सुबह 12 बजे से शुरू हुआ। बता दें कि हुरंगा खेलने के लिए ब्रज की गोपिकाएं आकर्षक पहनावे में परंपरागत लहंगा-फरिया व आभूषण पहन कर झुंड में मंदिर के विभिन्न द्वारों से होली गीत गाते हुए प्रवेश करतीं हैं। मंच पर श्रीकृष्ण, बलराम सखाओं के साथ अबीर गुलाल उड़ाते हैं।दाऊजी में गोस्वामी कल्याणदेव के वंशज पांडेय समाज के लोग ही हुरंगा खेलते हैं। छत, छज्जों से क्विंटलों गुलाल एवं फूलों की पंखुड़ियां उड़ाईं गईं। इस दौरान आकाश इंद्र धनुषी होता है। हुरंगा में हुरियारिनें झंडा छीनने का प्रयास करती हैं। पुरुष इसे बचाने का प्रयास करते हैं। अंत में महिलाएं झंडा छीनने में सफल होकर हारे रे रसिया, जीत चली ब्रज नारि, इसके साथ हुरंगा संपन्न हो जाता है।