अफगानिस्तान धीरे-धीरे ही सही एक बुरे सपने की तरह दुनिया के सामने दिखने लगा है। वहीं दूसरी तरफ उसकी इस दुर्दशा के लिए अमेरिका की जमकर आलोचना हो रही है। हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने यह कहते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया है कि अफगानिस्तान भौगोलिक तौर पर इतिहास में कभी एकजुट नहीं रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपनी नाकामी का ठीकरा अफगानिस्तान के नागरिकों पर फोड़ दिया है। ऐसी दशा में अफगानियों की नजर रूस, भारत सहित अन्य पड़ोसी देशों की ओर जाना स्वाभाविक है।दूसरी तरफ चीन और पाकिस्तान को अफगानिस्तान के नागरिक अपनी मुश्किलों का कारण मानते हैं। ऐसे में भारत और ईरान पर उनको भरोसा रहा है, परंतु दिक्कत यह है कि अफगानिस्तान में इन देशों की भूमिका सीमित रही है। ऐसे में उनकी नजर रूस पर जा टिकती है। उन्हें पता है कि रूस अगर उनकी मदद के लिए आगे आता है तो भारत और ईरान भी मदद के लिए आगे आ सकते हैं। बहरहाल, अफगान के रोज बदलते हालात में किसी भी प्रकार के निष्कर्ष पर पहुंचना अभी किसी भी देश के लिए मुश्किल हो रहा है।वैसे यह कहना गलत नहीं होगा कि अफगानिस्तान लगभग पूरी दुनिया के आतंकियों की शरणस्थली बनने जा रहा है। समूचे दक्षिण एशिया के लिए आतंकवाद एक बड़ी चुनौती बनने जा रहा है और भारत व रूस के लिए ये खतरा ज्यादा बड़ा है। अगर रूस की स्थिति को समङों तो पाएंगे कि उसके लिए अफगान के वर्तमान हालात संभावनाएं कम और अनिश्चितता व खतरे ज्यादा लेकर आया है। जहां तक चुनौती की बात की जाए तो रूस, अफगानिस्तान में अमेरिका के लंबे समय तक बने रहने को लेकर पहले से ही काफी सकते में था। लेकिन रूस के लिए सुखद स्थिति है कि अमेरिका बिना किसी निष्कर्ष पर पहुंचे अफगानिस्तान से लौट गया। रूस की विदेश नीति के लिए यह एक प्रकार से वैचारिक और नीतिगत जीत है।