हरियाणा के आदमपुर विधानसभा उपचुनाव में तीन बजे तक 55 प्रतिशत मतदान

हिमाचल प्रदेश में पूर्ववर्ती राजपरिवार के सदस्य न केवल चुनाव लड़कर बल्कि चर्चा के केंद्र में रहकर अपना प्रभाव कायम रखना चाह रहे हैं। कांग्रेस ने आगामी विधानसभा चुनाव में राजपरिवार के कई सदस्यों पर दाव लगाया है, वहीं सत्तारूढ़ भाजपा ने कहा कि लोकतंत्र में ‘राजा रानियों’ के लिए कोई जगह नहीं है। हालांकि साल दर साल हिमाचल की सियासत में राजपरिवारों का प्रभाव कम हुआ है और इस बार मैदान में उतरे ऐसे परिवारों के सदस्यों की कम संख्या से यह पता चलता है। राज्य में 12 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव में राजघराने की पृष्ठभूमि वाले कुछ लोग ही किस्मत आजमा रहे हैं। इन राज परिवारों में करीब पांच दशक से राज्य की राजनीति में दबदबा रखने वाले रामपुर बुशहर राज परिवार के वीरभद्र सिंह प्रमुख हैं। उनके बेटे विक्रमादित्य इस बार शिमला ग्रामीण सीट से मैदान में हैं। विक्रमादित्य सिंह की मां प्रतिभा सिंह हिमाचल प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष हैं। वह मंडी से सांसद हैं और विधानसभा चुनाव नहीं लड़ रहीं। चुनावी किस्मत आजमाने वाले राजपरिवार के अन्य प्रमुख लोगों में चंबा राजपरिवार की आशा कुमारी हैं। डलहौजी से पांच बार की विधायक कुमारी को इस बार भी कांग्रेस से टिकट मिला है। शिमला जिला परिषद के पूर्व अध्यक्ष निर्दलीय विधायक अनिरुद्ध सिंह कसुम्पटी से एक बार फिर भाग्य आजमा रहे हैं। कुल्लू की बंजार विधानसभा से हितेश्वर सिंह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में हैं। उनके पिता एवं पूर्ववर्ती कुल्लू के राजा महेश्वर सिंह को बेटे के मैदान में उतरने के बाद टिकट नहीं मिला। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि यह ‘राजाओं और रानियों’ की पार्टी है। यह संदर्भ पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के लिए माना जा रहा है जिन्होंने दशकों तक यहां शासन चलाया और जिनकी पत्नी तथा पुत्र अब भी सक्रिय हैं। हालांकि इस बार क्योंथल राज परिवार की विजय ज्योति सेन चुनाव नहीं लड़ रहीं। वह प्रतिभा सिंह की भाभी हैं। उन्होंने पिछला विधानसभा चुनाव कसुम्पटी से लड़ा था। इस बार वह भाजपा का समर्थन कर रही हैं। केंद्रीय गृह मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता अमित शाह ने चुनावी रैलियों में कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा था, ‘‘राजा-रानी के दिन लद गये, अब आम आदमी का समय है।’’ उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में अब ‘राजा-रानी’ की जरूरत नहीं है। हालांक अनिरुद्ध सिंह कहते हैं कि मतदाताओं की मौजूद पीढ़ी के लिए यह मायने नहीं रखता कि कोई शाही परिवार से ताल्लुक रखता है या नहीं, बल्कि व्यक्ति का आचरण मायने रखता है।