द्योत देबबर्मा की नई पार्टी टिपरा मोथा की क्यों हो रही चर्चा

त्रिपुरा चुनाव के नतीजे अब धीरे-धीरे साफ होने लगे हैं। यहां भारतीय जनता पार्टी गठबंधन की सरकार बनते दिख रही है। एकसाथ आने के बावजूद कांग्रेस और लेफ्ट को कुछ खास फायदा होता नहीं दिख रहा है। इन सबके बीच त्रिपुरा में सबसे ज्यादा चर्चा राजा प्रद्योत देबबर्मा की हो रही है। राजा प्रद्योत देबबर्मा ने चुनाव से ठीक पहले एक नई पार्टी बनाई थी, जिसका नाम रखा गया टिपरा मोथा पार्टी। शुरुआती रूझान के अनुसार, इस पार्टी को करीब 10 सीटें मिल सकती हैं। अगर नतीजों में कुछ भी उलटफेर हुआ तो राजा प्रद्योत देबबर्मा किंगमेकर साबित हो सकते हैं। प्रद्योत ने कुछ शर्तों के साथ भाजपा गठबंधन को समर्थन देने का एलान भी कर दिया है। ऐसे में आज हम आपको बताएंगे कि आखिर राजा प्रद्योत देबबर्मा हैं कौन? कैसे उन्होंने त्रिपुरा की सियासी तस्वीर बदल दी? भाजपा को समर्थन देने के लिए उन्होंने क्या बोला?

पहले जानिए राजा प्रद्योत देबबर्मा के बारे में
चार जुलाई 1978 को दिल्ली में पैदा हुए प्रद्योत बिक्रम मनिक्य देबबर्मा त्रिपुरा के 185वें महाराजा कीर्ति बिक्रम किशोर देबबर्मा के इकलौते बेटे हैं। राजशाही परंपरा खत्म होने के बाद महाराजा कीर्ति बिक्रम किशोर देबबर्मा भी राजनीति में उतर आए थे। कांग्रेस से जुड़े और सांसद चुने गए। उनकी पत्नी महारानी बीहूबी कुमारी देवी भी कांग्रेस के टिकट पर दो बार विधायक चुनी गईं थीं। वह त्रिपुरा सरकार में मंत्री भी रह चुकी हैं। प्रद्योत की पढ़ाई शिलॉन्ग में हुई।

कांग्रेस छोड़कर नई पार्टी बनाई
युवावस्था में ही प्रद्योत देबबर्मा ने भी राजनीति में कदम रख दिया था। कांग्रेस युवा मोर्चा से जुड़ गए और त्रिपुरा में आदिवासी वर्ग के लिए आवाज उठाने लगे। वह त्रिपुरा कांग्रेस के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। 2019 में कांग्रेस छोड़ने के बाद उन्होंने टिपरा मोथा का गठन किया। शुरू में यह गैर राजनीतिक संगठन था। हालांकि, 2021 में स्थानीय चुनाव में ताल ठोककर प्रद्योत बिक्रम के संगठन ने राजनीतिक पारी की शुरूआत की।कांग्रेस से अलग होने के बाद प्रद्योत ने ‘ग्रेटर टिपरालैंड’ की मांग रखी। प्रद्योत का कहना है कि, ‘ग्रेटर टिपरालैंड’ मौजूदा त्रिपुरा राज्य से अलग एक राज्य होगा। नई जातीय मातृभूमि मुख्य रूप से उस क्षेत्र के स्वदेशी समुदायों के लिए होगी जो विभाजन के दौरान पूर्वी बंगाल से भारत आए बंगालियों की वजह से अपने ही क्षेत्र में अल्पसंख्यक हो गए थे।1971 में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के दौरान बंगाली लोगों की एक बड़ी संख्या ने त्रिपुरा में शरण ली। जनगणना 2011 के अनुसार, बंगाली त्रिपुरा में 24.14 लाख लोगों की मातृभाषा है जो यहां की 36.74 लाख आबादी में से दो-तिहाई है। प्रद्योत अलग राज्य की मांग इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि अलग राज्य आदिवासियों के अधिकारों और संस्कृति की रक्षा करने में मदद करेगा, जो बंगाली समुदाय के लोगों के आ जाने से अब अल्पसंख्यक हो गए हैं।