भारत के परम वैभव से आकर्षित होकर सातवीं सदी की शुरुआत से सौलहवीं सदी तक निरंतर हजारों हिन्दू, जैन और बौद्ध मंदिरों का न केवल विध्वंस किया गया बल्कि उसकी संपदा को भी लूट लिया गया। खासतौर पर ऐसे पूजास्थलों पर आक्रमण किया गया जो अपने विशालतम आकार से कहीं ज्यादा देश की गौरवशाली अस्मिता का प्रतीक थे। अपनेप्रत्येक आक्रमण में गजनवी ने सनातन धर्मियों केकितने ही छोटे-बड़े मंदिरों को अपना निशाना बनाया। मंदिरों में जमा धन को लूटा और मंदिरों को तोड़ दिया।
वर्ष 725 में सिंध के अरब शासक अल-जुनैद ने महमूद गज़नी से पहले ही इस मंदिर में तबाही मचाई थी। जगन्नाथ मंदिर को 20 बार विदेशी हमलावरों द्वारा लूटे जाने की कहानी हो या सोमनाथ के संघर्ष के इतिहास से हर कोई रूबरू है। विदेशी आततातियों के इतने आक्रमण और लूटे जाने के बाद भी हिन्दुस्तान के मंदिर धार्मिक सहिष्णुता और समन्वय का अद्भुत उदाहरण आज भी बना हुए हैं। धर्म से जुड़ी भावनाएं बहुत कोमल होती हैं और अक्सर राजनीति में उसका ख्याल रखना जरूरी होता है। लेकिन महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण ने केंद्र सरकार से देश के धार्मिक ट्रस्टों में रखे सोने के भंडार का इस्तेमाल करने का सुझाव दिया। ताकी इससे संकट से जूझ रहे देश का कुछ उद्धार हो सके। लेकिन उनके सोने वाले बयान पर सियासत का चढ़ावा चढ़ गया। शायद पृथ्वीराज ये भूल गए कि सवाल भगवान के खजाने पर नहीं, बल्कि भगवान पर उठेंगे। यही हुआ, मंदिर के सोने पर सियासत में खलबली मच गई।