Water Day: धरती पर कहाँ से आया पानी, जानें पूरी कहानी…

Main Stories (Rashtra Pratham): हम सब जानते हैं हमारी धरती को ब्लू प्लेनेट भी कहा जाता है। लेकिन क्यों? क्योंकि पूरे सोलर सिस्टम में हमारी अपनी पृथ्वी अकेला ऐसा ग्रह है, जिस पर इतनी बड़ी तादाद में पानी है। यों तो आप सभी ने सुना होगा कि जल ही जीवन है। इसे हम एक और तरह से समझ सकते हैं- हम जब भी पृथ्वी से परे किसी ग्रह पर जीवन की संभावना तलाशते हैं तो सबसे पहले वहां पानी ढूंढते हैं।

आज वर्ल्ड वॉटर डे है। ऐसे में यह जानना भी जरूरी है कि आखिर हमारी धरती पर इतना पानी आया कैसे, जो इसे इतना अनोखा बनाता है? इसे लेकर दुनियाभर के वैज्ञानिकों में डिबेट है कि पृथ्वी का पानी उसका अपना है या किसी उल्का पिंड-धूमकेतु यानी मेटियोरॉइड या एस्टेरॉइड के साथ धरती पर पहुंचा। यानी क्या हमारा पानी अपना है यह इंपोर्टेड।

फ्रांस के नैसे में यूनिवर्सिटी दि लॉरिएन के सेंटर दि रिसर्चसेस पेट्रोग्राफीक्स एट जियोकैमीक्स (सीआरपीडी) और अमेरिका की वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ फिजिक्स के वैज्ञानिकों की ताजा रिसर्च में साबित हो गया कि धरती का 95% पानी हमारा अपना है और 5% पानी किसी उल्का पिंड के जरिए पहुंचा था।

वैज्ञानिकों के इस दावे को समझने के लिए पहले दो बातें जान लेना जरूरी है। पहली यह कि आखिर पानी है क्या? और दूसरी यह कि हमारी पृथ्वी कैसे बनी? सबसे पहले बात पानी की…

झमाझम होती बारिश हो, केतली से निकलती भाप हो या सिल्ली घिसकर तैयार बर्फ का रसीला गोला। पानी के इन तीनों रूपों को केमिस्ट्री में H2O कहते हैं। H2O यानी पानी का अणु। और अणु किसी भी पदार्थ यानी सब्सटेंस की इकाई है। ठीक वैसे ही जैसे कोशिकाओं से मिलकर हमारा शरीर बनता है। यानी कोशिकाएं हमारे शरीर की इकाई हैं। H2O यानी पानी तीन परमाणुओं से मिलकर बना है। इनमें दो हाइड्रोजन के परमाणु हैं और एक ऑक्सीजन का। इसलिए इसका नाम H2O है।

विज्ञान कहता है कि हमारे सौरमंडल की शुरुआत एक बड़े धमाके से हुई। दरअसल, अंतरिक्ष में धूल और गैसों के सिकुड़ने की वजह से उसके केंद्र में एक छोटा सूरज बना। एक बच्चे जैसा और अस्थिर। यह सूरज तेजी से सोलर हवाएं यानी अपने अंदर से इलेक्ट्रॉन और प्रोटोन निकालने लगा। इस सोलर विंड की वजह से धूल और गैस से इस बड़े गोले में 1380 करोड़ साल पहले धमाका हो गया और इससे सोलर सिस्टम बनने की शुरुआत हुई। यही कोई 460 करोड़ साल पहले सूरज और पृथ्वी बने।

अब तक माना जाता था कि बिग बैंग इतनी ज्यादा गर्म प्रक्रिया है कि इससे बनने वाले ग्रहों पर पानी बचा नहीं रह सकता। वहीं, बिग बैंग के धमाके में बनी हाइड्रोजन ने मरते तारों से निकली ऑक्सीजन से मिलकर पानी बनाया, जो अंतरिक्ष में भारी मात्रा है, लेकिन शुरुआत में पृथ्वी जैसे गर्म ग्रह पर नहीं। ऐसे में धरती पर पानी किसी धूमकेतु या उल्कापिंड से पहुंचा है, लेकिन नई रिसर्च के मुताबिक धरती पर मौजूद केवल 5% पानी ऐसे उल्कापिंडों या धूमकेतु से पहुंचा, बाकी पानी पृथ्वी की चट्टानों में मौजूद हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के मिलन से खुद बना है।

इस रिसर्च में अहम भूमिका निभाने वालीं कॉस्मोकेमिस्ट डॉ. लॉरेट पियानी और उनके साथियों ने 13 तरह के दुर्लभ उल्का पिंडों को स्टडी किया। इन उल्का पिंडों को एन्सटेडटाइट कॉन्डराइट्स (ईसी) कहते हैं। दरअसल, पृथ्वी इसी तरह की चट्टानों से बनी है। इन चट्टानों में भारी मात्रा में हाइड्रोजन है। डॉ. पियानी की टीम का कहना है कि यह हाइड्रोजन पृथ्वी पर ऑक्सीजन के साथ बड़ी आसानी से पानी बना सकती है।

इन जैसी चट्टानों के अलावा पृथ्वी की मेंटल यानी बीच की परत में मौजूद चट्टानों में मिनरल्स के साथ ऑक्सीजन भी कैद है। यह परत 2900 किलोमीटर चौड़ी है। खास परिस्थितियों में यह ऑक्सीजन रिलीज होकर दूसरी चट्टानों की हाइड्रोजन से मिलकर पानी बना सकती है। नई रिसर्च के मुताबिक पृथ्वी पर हुआ भी यही था।