Main Stories (Rashtra Pratham) दिल्ली। न्यायपालिका के खिलाफ कथित ट्वीट को लेकर कार्यकर्ता और वकील प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही उच्चतम न्यायालय ने एक वकील की याचिका पर ‘‘स्वत: संज्ञान लेते हुए’’ शुरू की न की अपने आप से। शीर्ष अदालत के एक सूत्र ने यह जानकारी दी। मामले में अवमानना कार्यवाही के संदर्भ में मीडिया में आई खबरों का हवाला देते हुए आधिकारिक सूत्र ने ’उच्चतम न्यायालय की अवमानना कार्यवाही के विनियमन के नियम,1975’ को उद्धृत करते हुए कहा कि आपराधिक मानहानि के लिये किसी व्यक्ति द्वारा कोई याचिका दी जाती है तो इसके लिये महान्यायवादी (एजी) या सॉलीसीटर जनरल (एसजी) की लिखित सहमति होनी चाहिए। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने 22 जुलाई को भूषण को उनके द्वारा न्यायपालिका के खिलाफ किये गए कथित ट्वीट पर उनके विरुद्ध अवमानना की कार्यवाही शुरू करने का नोटिस दिया था। पीठ ने कहा कि उनके बयान से ’’न्याय के प्रशासन का प्रथम दृष्टया अपयश हुआ।” अवमानना कार्यवाही के विभिन्न पहलुओं में विभेद करते हुए अधिकारी ने कहा कि वास्तव में अनुज सक्सेना नाम के एक वकील ने एक व्यक्ति की तरफ से उच्चतम न्यायालय की रजिस्ट्री में एक याचिका दायर की थी और क्योंकि याचिका के साथ आपराधिक मानहानि की कार्यवाही के लिये जरूरी एजी या एसजी की सहमति नहीं थी इसलिये इसे अदालत की प्रशासनिक शाखा की तरफ भेजा गया। उन्होंने कहा कि बाद में पीठ ने इस मामले को न्यायिक शाखा में लिया और तथ्यात्मक स्थिति को समझने के बाद महान्यायवादी के के वेणुगोपाल से उनकी राय मांगी, जैसा कि प्रक्रियागत नियमों के तहत जरूरी है। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने वकील की अवमानना याचिका पर स्वत: संज्ञान लिया, न कि अपने आप कार्यवाही की जैसा कि मीडिया की कुछ खबरों में कहा गया है।