प्रसिद्ध लेखक भारतीय संस्कृति के प्रचारक शिक्षाविद टी एल वासवानी

प्रसिद्ध लेखक भारतीय संस्कृति के प्रचारक शिक्षाविद टी. एल. वासवानी

(25 नवंबर, 1879  –  16 जनवरी, 1966)

इतिहास के झरोखों से (Rashtra Pratham): प्रसिद्ध लेखक, शिक्षाविद और भारतीय संस्कृति के प्रचारक थे। वासवानी ने देश की स्वाधीनता के संग्राम का समर्थन किया था। इस विषय में गांधी जी के पत्र ‘यंग इंडिया’ में उन्होंने कई लेख लिखे थे। भारत सरकार ने टी. एल. वासवानी की स्मृति में डाक टिकट भी निकाला था।

प्रसिद्ध लेखक, शिक्षाविद और भारतीय संस्कृति के प्रचारक टी. एल. वासवानी का जन्म 25 नवंबर, 1879 ई. को ब्रिटिशकालीन भारत में हैदराबाद (सिंध) में हुआ था। उनका पूरा नाम ‘थांवरदास लीलाराम वासवानी’ था, पर वे टी. एल. वासवानी के नाम से विख्यात हुए। वासवानी प्रतिभावान विद्यार्थी तो थे ही, बचपन से ही उनकी रुचि आध्यात्मिक विषयों की ओर भी हो गई थी। उनका कहना था कि आठ वर्ष की उम्र में ही उन्होंने चारों ओर शून्य के बीच एक ज्योति के दर्शन किए थे और वही ज्योति अपने अंदर भी अनुभव की थी। वासवानी ने अपनी शिक्षा पूरे मनोयोग से पूरी की। मैट्रिक और बी.ए. में वे पूरे सिंध प्रांत में प्रथम आए। एम.ए. करने के बाद वे पहले टी. जी. कॉलेज और दयालसिंह कॉलेज, लाहौर में प्रोफेसर तथा बाद में कूच बिहार के विक्टोरिया कॉलेज के एवं पटियाला के महेद्र कॉलेज के प्रिंसिपल रहे थे।

वसवानी तीस वर्ष की आयु में भारत के प्रतिनिधि के रूप में विश्व धर्म सम्मेमेलन में भाग लेने के लिए बर्लिन गए। वहां पर उनका प्रभावशाली भाषण हुआ और बाद में वह पूरे यूरोप में धर्म प्रचार का कार्य करने के लिए गए। उनके भाशणों का बहुत गहरा प्रभाव लोगों पर होता था। वे मंत्रमुग्ध हो कर उन्हें सुनते रहते थे। वह बहुत ही प्रभावशाली वक्ता थे। जब वह बोलते थे तो श्रोता मंत्रमुग्ध होकर उन्हें सुनते रहते थे। श्रोताओं पर उनका बहुत गहरा प्रभाव पड़ता था। भारत के विभिन्न भागों में निरन्तर भ्रमण करके उन्होंने अपने विचारों को लागों के सामने रखा और उन्हें भारतीय संस्कृति से परिचित करवाया।

टी. एल. वासवानी उस युग में धरती पर आए, जब भारत परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था। देश में स्वतंत्रता के लिए आन्दोलन हो रहे थे। कोई भी व्यक्ति इस आन्दोलन से अपने आपको अलग नहीं रख पाता था। बंगाल विभाजन के मामले पर उन्होंने सत्याग्रह में भाग लेकर सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया। बाद में भारत की स्वतंत्रता के लिए चलाए जा रहे आन्दोलनों में उन्होंने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। वह महात्मा गाँधी की अहिंसा के बहुत बड़े प्रषंसक थे। उन्हें महात्मा गांधी के साथ मिलकर स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेने का अवसर मिला था। वह किसानों के हितों के रक्षक थे। उनका मत था कि- “भूमिहीनों को भूमि देकर उन्हें आधुनिक तरीके से खेती करने के तरीके बताए जाने चाहिए।” इसके लिए सहकारी खेती का भी उन्होंने समर्थन किया था।

16 जनवरी, 1966 ई. को पूना में टी. एल. वासवानी का देहांत हो गया। भारत सरकार ने उनकी स्मृति में डाक टिकट निकाला था।