भारत के स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी – भाई बालमुकुन्द

भाई बालमुकुन्द

(१८८९ – ११ मई १९१५)

इतिहास के झरोखों से (Rashtra Pratham): भाई बालमुकुन्द भारत के स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी थे। सन 1912 में दिल्ली के चांदनी चौक में हुए लॉर्ड हार्डिग बम कांड में मास्टर अमीरचंद, भाई बालमुकुंद और मास्टर अवध बिहारी को 8 मई 1915 को ही फांसी पर लटका दिया गया, जबकि अगले दिन यानी 9 मई को अंबाला में वसंत कुमार विश्वास को फांसी दी गई। वे महान क्रान्तिकारी भाई परमानन्द के चचेरे भाई थे।

23 दिसंबर 1 9 12 को, जब भगवान हार्डिंगी एक राज्य में चांदनी चौक, दिल्ली के माध्यम से चल रहे थे, उस पर एक बम फेंका गया था। वाइसरॉय ने केवल मामूली चोट लगीं, लेकिन उनके परिचर को मार दिया गया। एक और बम लॉरेंस गार्डन, लाहौर में कुछ माह में 17 मई 1 9 13 को कुछ महीने बाद फेंक दिया गया।  जांच के बाद, बाल्मुकुंड को जोधपुर से गिरफ्तार किया गया था, जहां वह जोधपुर महाराज के पुत्रों के शिक्षक के रूप में काम कर रहे थे। भाई बालमुकुंद का विवाह एक साल पहले ही हुआ था। आजादी की लड़ाई में जुटे होने के कारण वे कुछ समय ही पत्नी के साथ रह सके। उनकी पत्नी का नाम रामरखी था। उनकी इच्छा थी कि भाई बालमुकुंद का शव उन्हें सौंप दिया जाए, लेकिन अंग्रेज हुकूमत ने उन्हें शव नहीं दिया। उसी दिन से रामरखी ने भोजन व पानी त्याग दिया और अठारहवें दिन उनकी भी मृत्यु हो गई।

चौक में लार्ड हार्डिग पर बम फेंका था। हालांकि इनके खिलाफ जुर्म साबित नहीं हुआ, लेकिन अंग्रेज हुकूमत ने शक के आधार पर इन्हें फांसी की सजा सुना दी।

बम विस्फोटों की जांच के बाद दिल्ली में एक परीक्षण किया गया और 5 अक्टूबर 1 9 14 को उनके साथी मास्टर अमीर चंद, अवध बिहारी और बसंत कुमार बिस्वास के साथ बाल्मुकुंड की सजा सुनाई गई। उन्हें 8 मई 1 9 15 को अंबाला केंद्रीय जेल में फांसी दी गई थी। 

जिस स्थान पर इन्हें फांसी दी गई, वहां शहीद स्मारक बना दिया गया है जो दिल्ली गेट स्थित मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में स्थित है।