“चम्पारण का गाँधी” : राजकुमार शुक्ल

राजकुमार शुक्ल

(23 August 1875 – 20 May 1929)

इतिहास के झरोखों से (Rashtra Pratham):  भारत के स्वतंत्रता संग्राम के समय बिहार के चंपारण सतवरिया ग्राम के निवासी और स्वतंत्रता सेनानी थे। गांधी पहली मुलाकात में इस शख्स से प्रभावित नहीं हुए थे और यही वजह थी कि उन्होंने उसे टाल दिया. लेकिन इस कम-पढ़े लिखे और जिद्दी किसान ने उनसे बार-बार मिलकर उन्हें अपना आग्रह मानने को बाध्य कर दिया.

परिणाम यह हुआ कि चार महीने बाद ही चंपारण के किसानों को जबरदस्ती नील की खेती करने से हमेशा के लिए मुक्ति मिल गई. गांधी को इतनी जल्दी सफलता का ​भरोसा न था. इस तरह गांधी का बिहार और चंपारण से नाता हमेशा-हमेशा के लिए जुड़ गया. उन्हें चंपारण लाने वाले इस शख्स का नाम था राजकुमार शुक्ल. चंपारण का किसान आंदोलन अप्रैल 1917 में हुआ था.

गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह और अहिंसा के अपने आजमाए हुए अस्र का भारत में पहला प्रयोग चंपारण की धरती पर ही किया. यहीं उन्होंने यह भी तय किया कि वे आगे से केवल एक कपड़े पर ही गुजर-बसर करेंगे. इसी आंदोलन के बाद उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि से विभूषित किया गया. देश को राजेंद्र प्रसाद, आचार्य कृपलानी, मजहरूल हक, ब्रजकिशोर प्रसाद जैसी महान विभूतियां भी इसी आंदोलन से मिलीं. इन तथ्यों से समझा जा सकता है कि चंपारण आंदोलन देश के राजनीतिक इतिहास में कितना महत्वपूर्ण है. इस आंदोलन से ही देश को नया नेता और नई तरह की राजनीति मिलने का भरोसा पैदा हुआ.  लेकिन राजकुमार शुक्ल और उनकी जिद न होती तो चंपारण आंदोलन से गांधी का जुड़ाव शायद ही संभव हो पाता.

दिसंबर 1916 में कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में बिहार के किसानों के प्रतिनिधि बनकर वह लखनऊ गए और चंपारण के किसानों की दुर्दशा को शीर्ष नेताओं के समक्ष रखा। नील की खेती करनेवाले रैयत राजकुमार शुक्ल के अनुरोध पर महात्मा गाँधी चंपारण आने को तैयार हुए। राजकुमार शुक्ल के साथ बापू १० अप्रैल १९१७ को कोलकाता से पटना और मुजफ्फरपुर होते हुए मोतिहारी गए। नील की फसल के लागू तीनकठिया खेती के विरोध में गाँधीजी ने चंपारण में सत्याग्रह का पहला सफल प्रयोग किया।

चंपारण किसान आंदोलन देश की आजादी के संघर्ष का मजबूत प्रतीक बन गया था. और इस पूरे आंदोलन के पीछे एक पतला-दुबला किसान था, जिसकी जिद ने गांधी जी को चंपारण आने के लिए मजबूर कर दिया था. हालांकि राजकुमार शुक्ल को भारत के राजनीतिक इतिहास में वह जगह नहीं मिल सकी जो मिलनी चाहिए थी.

राजकुमार शुक्ल पर भारत सरकार द्वारा दो स्मारक डाक टिकट भी प्रकाशित किया गया है।

प्रसिद्ध गाँधीवादी लेखिका डॉ. सुजाता चौधरी द्वारा लिखा गया और वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित उपन्यास “सौ साल पहले : चम्पारण का गाँधी” राजकुमार शुक्ल की पहली प्रमाणिक जीवनी है। चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में लिखी गई यह किताब चम्पारण सत्याग्रह के सन्दर्भ में उत्कृष्ट है।