हिन्दी सिनेमा के प्रसिद्ध संगीतकार – कल्याणजी वीरजी शाह

कल्याणजी वीरजी शाह

(30 जून, 1928 –  24 अगस्त, 2000)

इतिहास के झरोखों से (Rashtra Pratham): कल्याणजी वीरजी शाह  हिन्दी सिनेमा के प्रसिद्ध संगीतकार थे। वे भारतीय हिन्दी फ़िल्मों की प्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी ‘कल्याणजी आनंदजी’ में से एक थे। गुजरात में कच्छ के कुंडरोडी मे 30 जून 1928 को जन्में कल्याणजी वीर जी शाह बचपन से ही संगीतकार बनने का सपना देखा करते थे। उन्होंने हालांकि किसी उस्ताद से संगीत की शिक्षा नही ली थी। वह अपने सपने को पूरा करने के लिये मुंबई आ गये और संगीतकार हेमंत कुमार के सहायक के तौर पर काम करने लगे।

बतौर संगीतकार सबसे पहले वर्ष 1958 मे प्रदर्शित फिल्म ‘सम्राट चंद्रगुप्त’में कल्याण जी को संगीत देने का मौका मिला। वर्ष 1960 मे उन्होंने अपने छोटे भाई आनंद जी को भी मुंबई बुला लिया। इसके बाद कल्याणजी ने आंनद जी के साथ मिलकर फिल्मों मे संगीत देना शुरू किया। 

वर्ष 1970 मे विजय आनंद निर्देशित फिल्म ‘जानी मेरा नाम’ में ‘नफरत करने वालो के सीने मे प्यार भर दू’, ‘ पल भर के लिये कोई मुझे प्यार कर ले’ जैसे रूमानी संगीत देकर कल्याणजी-आंनद जी ने श्रोताओं का दिल जीत लिया।मनमोहन देसाई के निर्देशन में फिल्म ‘सच्चा-झूठा’ के लिये कल्याणजी-आनंद जी ने बेमिसाल संगीत दिया।

‘मेरी प्यारी बहनियां बनेगी दुल्हनियां’ को आज भी शादी के मौके पर सुना जा सकता है। वर्ष 1968 मे प्रदर्शित फिल्म ‘सरस्वती चंद्र’के लिये कल्याणजी -आनंद जी को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का राष्ट्रीय पुरस्कार साथ-साथ फिल्म फेयर पुरस्कार भी दिया गया। इसके अलावा वर्ष 1974 मे प्रदर्शित ‘कोरा कागज’के लिये भी कल्याणजी-आनंद जी को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया। कल्याणजी ने अपने सिने कैरियर मे लगभग 250 फिल्मों को संगीतबद्ध किया।

वर्ष 1992 मे संगीत के क्षेत्र मे बहुमूल्य योगदान को देखते हुये वह पद्मश्री से सम्मानित किये गये।लगभग चार दशक तक अपने जादुई संगीत से श्रोताओं को भावविभोर करने वाले कल्याण जी 24 अगस्त 2000 को इस दुनिया को अलविदा कह गये ।