एक प्रसिद्ध हिन्दी लेखक एवं पत्रकार – बनारसीदास चतुर्वेदी

पण्डित बनारसीदास चतुर्वेदी

 (२४ दिसम्बर, १८९२ — २ मई, १९८५)

इतिहास के झरोखों से (Rashtra Pratham): बनारसीदास चतुर्वेदी का जन्म  सन 1892 ई में 24 दिसंबर को उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद में जन्मे चतुर्वेदी जी 1913 में इंटर की परीक्षा पास करने के बाद पास ही स्थित फर्रुखाबाद के गवर्नमेंट हाईस्कूल में तीस रुपये मासिक वेतन पर अध्यापक नियुक्त हो गए। लेकिन अभी कुछ ही महीने बीते थे कि उनके गुरु पंडित लक्ष्मीधर वाजपेयी ने उन्हें अध्यापन छोड़कर आगरा आने और ‘आर्यमित्र’ संभालने का आदेश सुना दिया। लक्ष्मीधर जी उन दिनों आगरा से आर्यमित्र निकालते थे। वास्तव में, वाजपेयी द्वारिकाप्रसाद सेवक के बुलावे पर उनके मासिक ‘नवजीवन’ के संपादक बनने वाले थे और ‘आर्यमित्र’ को ऐसे संपादक के हवाले कर जाना चाहते थे, जो उनके भरोसे पर खरा उतर सके।

पण्डित बनारसीदास चतुर्वेदी प्रसिद्ध हिन्दी लेखक एवं पत्रकार थे। वे राज्यसभा के सांसद भी रहे। उनके सम्पादकत्व में हिन्दी में कोलकाता से ‘विशाल भारत’ नामक हिन्दी मासिक निकला।

पं॰ बनारसीदास चतुर्वेदी जैसे सुधी चिंतक ने ही साक्षात्कार की विधा को पुष्पित एवं पल्लवित करने के लिए सर्वप्रथम सार्थक कदम बढ़ाया था। उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था।

चतुर्वेदी जी लक्ष्मीधर वाजपेयी की आज्ञा शिरोधार्य भी कर ली थी, लेकिन इसी बीच उन्हें इन्दौर के उस डेली कॉलेज में नियुक्ति का आदेश मिल गया। चतुर्वेदी जी को इंदौर में पहले तो डाॅ. संपूर्णानन्द का साथ मिला, जो उसी कॉलेज में शिक्षक थे, फिर वहां हिंदी साहित्य सम्मेलन आयोजित हुआ तो उसकी अध्यक्षता करने आए महात्मा गांधी के सान्निध्य व संपर्क ने उनकी लगातार बेचैन रहने वाली सेवाभावना व रचनात्मकता को नए आयाम दिए।

महात्मा गांधी ने 1921 में गुजरात विद्यापीठ की स्थापना की तो उनके आदेश पर चतुर्वेदी जी अपनी सेवाएं अर्पित करने वहां चले गए। इससे पहले गांधीजी ने चतुर्वेदी जी से हिंदी को राष्ट्रभाषा के तौर पर प्रतिष्ठित करने के अपने अभियान के संदर्भ में देश भर से अनेक मनीषियों के अभिप्राय एकत्र करवाए, जिसको पुस्तकाकार प्रकाशित किया गया।

1930 में उन्होंने ओरछा नरेश वीरसिंह जू देव के प्रस्ताव पर टीकमगढ़ जाकर ‘मधुकर’ नाम के पत्र का संपादन किया। नरेश ने उन्हें उनके निर्विघ्न व निर्बाध संपादकीय अधिकारों के प्रति आश्वस्त कर रखा था लेकिन बाद में उन्होंने पाया कि चतुर्वेदी जी ‘मधुकर’ को राष्ट्रीय चेतना का वाहक और सांस्कृतिक क्रांति का अग्रदूत बनाने की धुन में किंचित भी ‘दरबारी’ नहीं रहने दे रहे, तो उसका प्रकाशन रुकवा दिया।

भारत के स्वतन्त्र होने के पश्चात चतुर्वेदी जी बारह वर्ष तक राज्यसभा के मनोनीत सदस्य रहे और 1973 में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।

2 मई, 1985 को इस दुनिया से विदा लेने से पहले उन्होंने अपने खाते में ‘साहित्य और जीवन’, ‘रेखाचित्र’, ‘संस्मरण’, ‘सत्यनारायण कविरत्न’, ‘भारतभक्त एंड्रयूज़’, ‘केशवचन्द्र सेन’, ‘प्रवासी भारतवासी’, ‘फिज़ी में भारतीय’, ‘फिज़ी की समस्या’, ‘हमारे आराध्य’ और ‘सेतुबंध’ जैसी रचनाएं जमा कर ली थीं।

उन्होंने कई विदेशयात्राएं कीं और देश-विदेश में अनेक सामाजिक, सांस्कृतिक व साहित्यिक संस्थाओं और प्रतिभाओं के पुष्पन-पल्लवन में भी विशिष्ट योग दिया।

भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन के लोकप्रिय लेखक सुधीर विद्यार्थी कहते हैं कि वे 1972 में चतुर्वेदी जी द्वारा संपादित आगरा के ‘युवक’ मासिक के ‘स्वतंत्रता संग्राम योद्धांक’ से प्रेरित होकर ही क्रांतिकारियों की कीर्ति रक्षा के मिशन में लगे। वे चतुर्वेदी जी को अपना ‘गुरुवर’ बताते हैं और स्बयं को उनका ‘प्रिय विद्यार्थी’।

प्रसिद्ध पत्रकार व साहित्यकार पद्मभूषण से सम्मानित बनारसीदास चतुर्वेदी का स्मृति दिवस पर सादर नमन संग सादर श्रद्धांजलि अर्पित

– अरुण कुमार चौधरी  …✍ 🌹💐