ये 5 तथ्य बुंदेलखंड के उस वीर राजा ‘छत्रसाल’ के बारे में, जिसने मुगलों को हर मोड़ पर मात दी

भारत का इतिहास दो तरह का है. एक, जिसमें हज़ारों सालों की ग़ुलामी, विदेशी हमलावारों के ज़ुल्म है. वहीं, दूसरा, माटी के उन लालों का इतिहास, जो मातृ भूमि की रक्षा के लिए अपना ख़ून देने को हमेशा तैयार रहे. हम बात आज भारत के ऐसे वीर योद्धा की करेंगे, जिन्होंने न सिर्फ़ मुगलिया सल्तनत का डटकर मुकाबला किया, बल्कि अपनी प्रजा को भी एक सुरक्षित और संपन्न राज्य में रहने का मौक़ा दिया.इस महान राजा का नाम छत्रसाल है. वो राजपूत राजा, जिन्हें लोग बुंदेलखंड के शिवाजी के नाम से जानते हैं. बुंदेलखंड के इस रक्षक ने 16वीं शताब्दी के मध्य में मुगल बादशाह औरंगजेब के अत्याचार को चुनौती दी थी.राजा छत्रसाल एक वीर योद्धा तो थे ही, साथ में बेहतरीन शासक भी थे. उन्होंने अपने राज्य में कई क्रांतिकारी सुधार किए. 16वीं सदी में उन्होंने महिला पुजारियों को स्वीकृति दी. अपने राज्य में नहर प्रणाली और पंचायती राज की शुरुआत की. सभी धर्मों को समान भाव से देखा. एक योद्धा होने के बावजूद उनका आध्यात्म की ओर भी झुकाव रहा.मुग़ल सेनापति मोहम्मद खान बंगश ने जब बुंदेलखंड की तरफ़ नज़र डाली, तब राजा छत्रसाल की उम्र काफ़ी ज़्यादा हो चुकी थी. इससे पहले वो दो बार बंगश को हरा चुके थे, लेकिन इस बार परिस्थियां अलग थी. ऐसे में उन्होंने मराठा पेशवा बाजीराव 1 से सहायता मांगी. मराठाओं ने बंगश को आत्मसमर्पण करने पर मजबूर कर दिया. इस जीत के बाद वृद्ध छत्रसाल ने युवा पेशवा बाजीराव को अपने बेटे की तरह स्नेह और सम्मान दिया. कहा जाता है कि उन्होंने अपनी पुत्री मस्तानी की शादी भी बाजीराव से कर दी थीआज राजा छत्रसाल के नाम पर सड़कें, कॉलेज और यहां तक ​​कि एक विश्वविद्यालय भी है. छतरपुर के क्षेत्र का नाम भी इसी वीर महाराज के नाम पर पड़ा है. उत्तरी दिल्ली में कुश्ती के लिए मशहूर एक प्रसिद्ध स्टेडियम को भी ‘छत्रसाल स्टेडियम’ कहा जाता है. . राजा छत्रसाल, स्वामी प्राणनाथ के कट्टर शिष्य थे. कहते हैं कि उन्होंने राजा को वरदान दिया कि उनके राज्य में हमेशा हीरा मिलेगा. बाद में, राजा छत्रसाल ने पन्ना को अपनी राजधानी बनाया. यहीं पर मशहूर पन्ना हीरे की खानों की खोज की. इसके बाद बुंदेलखंड राज्य का वैभव काफ़ी बढ़ गया था.वीर छत्रसाल ने 52 युद्ध लड़े और कभी नहीं हारे. औरंगज़ेब को इस बहादुर राजा से हमेशा ख़तरा रहता था, लेकिन इसके बावजूद वो कुछ कर न पाया. छत्रसाल की युद्ध नीति और कुशलतापूर्ण सैन्य संचालन के आगे कई बार औरंगज़ेब की सेना को हार माननी पड़ी. 1707 में औरंगज़ेब की मौत के बाद मुगल साम्राज़्य ख़ुद ही बिखरने लगा. राजा छत्रसाल की जीते-जी कभी बुंदेलखंड पर आंच नहीं आई.इस महान वीर योद्धा की बहादुरी और अपने मातृ भूमि के प्रति मज़बूत भावना का ही नतीजा है कि आज भी भारतीय उनसे प्रेरणा लेते हैं.