गुर्दे की बीमारी से बचने के लिए जीवनशैली में सुधार लाएं। नियमित कसरत करें। खान पान पर नियंत्रण रखें। अत्याधिक तली-भुनी वस्तुओं के प्रयोग से बचें। यह सलाह पीजीआई नेफ्रोलॉजी विभाग के डॉ. नारायण प्रसाद ने दी।
रविवार को पीजीआई में इंडियन सोसाइटी ऑफ नेफ्रोलाजी (नार्थ जोन) के वार्षिक अधिवेशन का समापन हुआ। डॉ. नारायण प्रसाद ने बताया कि बेढंगी जीवनशैली की वजह से लोग ब्लड प्रेशर की चपेट में आ रहे हैं। डायबिटीज, दिल, थायराइड समेत दूसरी बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। ऐसे मरीजों को संजीदा रहने की जरूरत है। खान-पान पर विशेष ध्यान दें। रोजाना कसरत करें। साल में एक बाद पेशाब की जांच कराएं। यदि पेशाब में प्रोटीन आए तो तुरंत गुर्दा रोग विशेषज्ञ की सलाह लें।
गुर्दे की बीमारी की जद में आए मरीज निराश न हो। नियमित दवा व खान-पान के साथ कसरत करें। पैदल टहलें। इससे डायलिसिस के खतरों को लंबे समय तक टाला जा सकता है। गुर्दे की बीमारी लगातार बढ़ती जा रही है। यूपी में करीब 40 हजार गुर्दा रोगी किडनी प्रत्यारोपण के इंतजार में हैं। ये मरीज डायलसिसि पर हैं। पर, अस्पतालों में गुर्दा प्रत्यारोपण की सुविधाएं कम हैं। गिनेचुने अस्पतालों में ही गुर्दा प्रत्यारोपण हो रहा है। एक साल में महज 150 गुर्दा प्रत्यारोपण हो रहे हैं। सरकार ब्रेन डेड मरीजों के अंग प्रत्यारोपण की दिशा में प्रयास करे।नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. अमित गुप्ता बताते हैं कि ओपीडी में आने वाले 30 फीसदी मरीजों में गुर्दा खराब होने की वजह एक्यूट किडनी इंजरी होती है। इनमें 8 से 10 प्रतिशत में क्रानिक किडनी डिजीज की आशंका होती है। ऐसे मरीज लगातार डॉक्टर के संपर्क में रहे। डॉ. अनुपमा कौल बताती हैं कि गुर्दे की समस्या मालूम होने पर तुरंत खून की जांच कराएं। खून में क्रिएटिनिन और यूरिया की अधिक मात्रा गुर्दा खराब का संकेत देती हैं। पेशाब तथा खून का परीक्षण, सोनोग्राफी आदि जांच से बीमारी की पहचान कर सकते हैं।